पता नहीं किस रूप में आकार नारायण मिल जाएगा , निर्मल मन के दर्पण में वह राम के दर्शन पाएगा ,
सांस रुकी तेरे दर्शन को, न दुनिया में मेरा लगता है शबरी बांके बैठा हूं मेरा श्री राम में अटका मन बेकार मेरे दिल को मैं कितना भी समझा लूं राम दरस के बाद दिल चोरेगा ये धड़कन काले युग प्राणि हूं पर जीता हूं मैं त्रेता युग ,
कर्ता हूं महसुस पलों को माना न वो देखा युग देगा युग कलि का ये पापोन के उपहार का चांद मेरा पर गाने का हर प्राण को देगा सुख हरि कथा का वक्त हूं मैं, राम भजन की आदत ,
राम आभारी शायर, मिल जो राही है दावत हरि कथा सुना के मैं चोर तुम्हें कल जाउंगा बाद मेरे न गिरने न देना हरि कथा विरासतत ,
पाने को दीदार प्रभु के नैन बड़े ये तरस है जान सके ना कोई वेदना रातों को ये बरसे है किसे पता किस मौके पे, किस भूमि पे, किस कोने में मेले में या वीराने में श्री हरि हमें दर्शन दे ,
इंतजार में बैठा हूं कब बीतेगा ये काला युग बीतेगी ये पीडा और भारी दिल के सारे दुख मिलने को हूं बेकार पर पाप का मैं भागी भी ,
नाज़रीन मेरी आगे तेरे श्री हरि जाएगी झुक राम नाम से जुड़े हैं ऐसे खुद से भी ना मिल पाए कोई ना जाने किस चेहरे में राम हमें कल मिल जाए वैसे तो मेरे दिल में हो पर आंखें प्यासी दर्शन की ,
शाम, सवेरे सारे मौसम राम गीत ही दिल गए रघुवीर ये वींटी है तुम दूर करो अंधेरों को दूर करो परेशानी के सारे भुखे शेरों को शबरी बांके बैठा पर काले युग का प्राण हूं ,
मैं जूता भी ना कर दूंगा पापी मुह से बेरो को बन चुका बैरागी दिल, नाम तेरा ही लेता है शायर अपनी सांसें ये राम सिया को देता है ,
और नहीं इच्छा है अब जीने की मेरी राम यहां बाद मुझे मेरी मौत के बस ले जाना तुम त्रेता में शायद तुम्हे यह भी अच्छा लगे ,