कहासे आया कहा जाओगे , खबर करो अपने तनकी |
कोई सद्गुरु मिले तो भेद बतावे , खुलजावे अंतर की खिड़की ||
हिन्दू मुस्लिम दोनों भुलावे , खटपट माय रिया अटकी |
जोगी जंगम शेख सवेरा , लालच माय रिया भटकी ||
काजी बैठा कुरान बांचे , जमीन जोर वो करी चटकी |
हर दम साहेब नहीं पहेचाना , पकड़ा मुर्गी ले पटकी ||
बहार बैठा ध्यान लगावे , भीतर सुरता रही अटकी |
बहार बंदा भीतर गन्दा , मन मैल मछली गटकी ||
माला मुद्रा तिलक छापा , तीरथ बरत में रिया भटकी |
गावे बजावे लोक रिजावे , खबर नहीं अपने तनकी ||
बिना विवेक से गीता बांचे , चेतन को लगी नहीं चटकी ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो , आवागमन ने रिया भटकी ।।
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