चलना है दूर मुसाफिर | Chalna Hai Dur Musafir | Kabir Bhajan Lyrics | Bhajanbook

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चलना है दूर मुसाफिर , काहे सोवे रे ।
काहे सोवे रे , मुसाफिर काहे सोवे रे ।।

चेत अचेत नर सोच बावरे , बहोत नींद मत सोवे रे ।
काम , क्रोध , मद , लोभ में फसकर , उमरिया काहे खोवे रे ।
चलना है दूर मुसाफिर ।।

शिर पर माया मोह की गठरी , संग दूत तेरे होव रे ।
सो गठरी तोरी बिच में चीन गई , मुंड पकड़ कहा रोवे रे ।
चलना है दूर मुसाफिर ।।

रास्ता तो दूर कठिन है , चल अब अकेला होवे रे ।
संग साथ तेरे कोई ना चलेगा , काके डगरिया जोवे रे ।
चलना है दूर मुसाफिर ।।

नदिया गहरी नव पुरानी , केहि विधि पार तू होवे रे ।
काहे कबीर सुनो भाई साधो , ब्याज धो के मूल मत खोवे रे ।
चलना है दूर मुसाफिर ।।

 

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