दुनिया दो दिन का है मेला, जिसको समझ पड़े अलबेला।
जैसी करनी वैसी भरनी, गुरु हो या चेला।
सोने चांदी धन रतनों से, खेल आजीवन खेला,
चलने की जब घड़ियाँ आई, संग नहीं चलेगा धेला।
महल बनाया, किला बनाया, कह गयो मेरा मेरा,
कहत कबीरा अंत समय सब, छोड़ देंगे अकेला।
पांच पचीस भये हैं बराती, ले चल ले चल हो ली,
कहत कबीरा बुरा नहीं मानो, ये गति सब की होनी।
इस जग में नहीं कोई तेरा, ना कोई सगा सगाई,
लोग कुटुम्ब मेरे कट गए, प्राणी जाए अकेला।
Duniya Do Din Ka Hai Mela Lyrics
Kabir Bhajan Lyrcis
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